मंगलवार, 20 दिसंबर 2011
पर्यावरण को बचायें, इको-फ्रेंडली कप अपनाएं
मित्रों की राय आमंत्रित है. आप लोग इस बारे में कुछ ओर बेहतर सुझाव दें. ताकि हम अपने इस प्रयास को आगे बढ़ा सकें. आशा है आप लोगों का सहयोग मिलेगा.
शुक्रवार, 29 जुलाई 2011
विभिन्न प्रजातियों के 200 पौधे लगाए
इस अवसर पर संस्था की अध्यक्ष श्रीमती उर्मिला चंद ने कहा कि वृक्ष हमारी मूलभूत आवश्यकता हो गई है। वृक्ष लगाना व उनकी सुरक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। जिससे हमें शुद्ध हवा, स्वच्छ वातावरण, जल, लकड़ी आदि मिलती है।
जागृति पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य श्री जयवीर चंद ने कहा कि वृक्षों पर हमारा जीवन निर्भर है। हमें जनसंख्या को कम करने तथा वृक्षों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन संस्था के सचिव शशिमोहन रावत 'पहाड़ी' ने किया। इस अवसर डॉ. विरेन्द्र चंद, देवेन्द्र चंद, केदार सिंह, सरदार रावत, रणजीत चंद व ग्रामसभा के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
मंगलवार, 5 जुलाई 2011
ऐसे होता है पौधों के परिवार का जन्म
नर फूलों में होता है कोशिकीय अंडाणु
हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक स्वतः उगने वाले पौधों के फूलों में एक कोशिकीय अंडाणु होता है। यह कोशिकीय अंडाणु नर फूल में छिपा होता है। जब हवा चलती है तो यह अंडाणु मादा फूलों के संपर्क में आता है। मादा फूल से मिलने के बाद इनके संयोग से फूल के बीजों पर एक आवरण चढ़ जाता है। जब यह बीज भूमि पर गिरते हैं तो अन्य पौधों का जन्म होता है।
विविधता को समझने में अहम है रिसर्च
प्रोसिडिंग ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित इस रिसर्च में बताया गया है कि इस कोशिकीय अंडाणु का निर्माण हर फूल में नहीं होता। केवल कुछ फूलों में ही ये अंडाणु होते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक जैसे ही नर फूल के अंडाणु मादा फूलों के संपर्क में आते हैं तो अन्य पौधों के उपजने के लिए अन्य बीजों का निर्माण हो जाता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह रिसर्च पौधों में विविधता के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
साभार : अमर उजाला कॉम्पेक्ट
गुरुवार, 16 जून 2011
बाबा नीब करौरी आश्रम में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
- बाबा के जयकारों के बीच कैंची में 80 हजार श्रद्धालुओं ने किए दर्शन
आश्रम में हर साल 15 जून को प्रतिष्ठा दिवस मनाया जाता है। बुधवार को भी तड़के पांच बजे मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों-श्रद्धालुओं ने मंदिर में पूजा अर्चना के बाद ढोल नगाड़ों के साथ मंदिर परिसर स्थित देवताओं को प्रसाद का भोग लगाया। इसके बाद 6:30 बजे से मंदिर के कपाट खोल दिए गए। दो बजे मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों, खुफिया तंत्र और पुलिस अधिकारियों ने लगभग 80 हजार श्रद्धालुओं के मंदिर में पहुंचने की पुष्टि की।
साभार : अमर उजाला
शनिवार, 11 जून 2011
बुधवार, 8 जून 2011
पर्यावरण बचाने के लिए हिमालय के संरक्षण पर जोर
गोष्ठी में मुख्य अतिथि डीएवी कालेज देहरादून के प्राचार्यप्रो.एपी जोशी ने कहा कि जंगलों के अंधाधुंध कटान सेपर्यावरण प्रभावित हो रहा है। जल, जंगल व जमीन के संरक्षण के साथ ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने कीजरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार चारू चंद्र तिवारी ने कहा कि वन एवं पर्यावरण को बचाने में ग्रामीणों की भूमिकामहत्वपूर्ण है।विधायक किशोर उपाध्याय ने पर्यावरण संरक्षण के लिए महिला संगठनों को जागरूक करने पर जोरदिया। दूरदर्शन के पूर्व संपादक राजेंद्र धस्माना, पत्रकार विजेंद्र रावत, दिनेश जोशी, शांति ठाकुर आदि ने पर्यावरणसंरक्षण के लिए ‘अपना गांव-अपना वन’ की अवधारणा के साथ लोगों को जागरूक करने की बात कही। इस मौकेपर समिति के सचिव शशिमोहन, डा. विरेंद्र चंद्र, डा. रश्मि चंद्र, डा. बचन रावत, रमेश रावत, नगर पंचायत अध्यक्षबुद्धि सिंह रावत, सकल चंद रावत, केंद्र सिंह राणा, आनंदी राणा आदि मौजूद थे। गोष्ठी का संचालन प्रमोद रावत ने किया।
http://www.amarujala.com/city/Utter%20Kashi/Utter%20Kashi-17133-17.html
पर्यावरण को बचाने के लिए सभी एनजीओ एकजुट होकर काम करें
संगोष्ठी में संस्था के संरक्षक श्री विजेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सभी गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को एकजुट होकर काम करना चाहिए। इसके लिए हिमालय टॉस्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए। यमुना और गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए यमुना घाटी विकास प्राधिकरण का भी गठन होना चाहिए। महिलाओं को रोजगार से जोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि पर्यावरण से संबंधित योजनाएं बनाने में स्थानीय लोगों की राय ली जानी चाहिए।
कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री सकल चंद रावत ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सामुहिक रूप से संगठित होकर प्रयास किया जाना चाहिए। रवांई क्षेत्र को एक मॉडल के रूप में विकसित किया जा सकता हैं। रवांई-जौनपुर अपने आप में एक शोध का केंद्र हैं। आज सहकारिता और सहभागिता विलुप्त होती जा रही है। लोगों के अंदर सेवा भावना पैदा करने की आवश्यकता है। सरकारी काम केवल कागजों में होता है, जबकि गैर सरकारी संगठन ज्यादा प्रभावकारी कार्य कर सकते हैं। अत: इनको बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जंगलों को बचाना है तो किसानों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। आज बड़ी-बड़ी कंपिनयों के जाल में किसान फंसता जा रहा हैं उसको घटिया किस्म का बीज और खाद वितरित की जा रही है। इसके लिए किसानों को जागरूक करना होगा।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो। एस. पी. जोशी ने बताया कि पर्यावरण एक प्रचलित शब्द है, जो दो घटकों - जैविक और अजैविक से मिलकर बना है। जैविक घटकों में मिट्टी, पानी और हवा मुख्य हैं और यही जीवन का आधार हैं। इनको संरक्षित किया जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जंगल वहीं ज्यादा घने हैं, जहां मानव हस्तक्षेप नहीं हुआ। मानव हस्तक्षेप से ही जंगल नष्ट हुए हैं और जैविक घटकों की कमी होने लगी है। उन्होंने बताया कि 50 साल की उम्र का एक पेड़ अपने जीवन काल में 70 लाख रूपए की ऑक्सजीन मानव जाति को देता है और 50 साल में यही पेड़ लगभग 20 लाख रुपए की कार्बनडाई ऑक्साइड (CO2) अवशोषित करता है और मिट्टी के कटाव को रोककर लगभग 5 लाख रुपए की मिट्टी बचाता है।
उन्होंने बताया कि जब भ्ाी हमने पर्यावरण के साथ छेड़-छाड़ की तो हमें प्राकृतिक आपदा के रूप में भ्ाारी कीमत चुकानी पड़ी। यदि हम प्रकृति के नियमों का पालन करेंगे तो मानव जाति बची रहेगी। इसके लिए गांव-गांव एवं हर घ्ार-घ्ार में चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष लगाए जाने चाहिए। वृक्षों को बचाने के लिए ग्रामीण स्तर पर महिला मंगल दल एवं महिला समूहों की स्थापना होनी चाहिए, क्योंकि सामाजिक क्षेत्र और प्राकृतिक क्षेत्र को बचाने में महिलाएं सक्षम हैं।
इस अवसर पर दूरदर्शन के पूर्व संपादक श्री राजेन्द्र धस्माना ने कहा कि पर्यावरण, विकास और प्राकृतिक आपदाओं को हमें एक साथ देखना चाहिए, क्योंकि विकास के साथ विस्थापन प्राकृतिक आपदाएं और विकास की वे सारी बीमारियां हैं जो कम या ज्यादा हमारे पूरे जनजीवन को प्रभावित करती हैं। इसलिए जब भी हम विकास की बात करें तब हमें उन खतरों का सामाना भी करना होगा जो विकास के मॉडल से उपजती हैं इसलिए नीति-नियंताओं को चाहिए कि वह जब भी ऐसी परियाजनाओं पर काम करें उसमें जनता के हित सर्वोपरी हों और विस्थापन व प्राकृति संपदा को कम से कम नुकसान हो।
टिहरी के विधायक श्री किशोर उपाध्याय ने बताया कि पर्यावरण को बचाने के लिए अच्छी योजनाएं बनाई जानी चाहिए और पहाड़ों के लिए कोई भी योजना बनने से पहले वहां की भौगोलिक परिस्थिति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। ग्रामीण स्तर पर किसानों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इसके लिए चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों को लगाया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि जल संरक्षण का भी प्रयास किया जाना चाहिए।
नगर पंचायत अध्यक्ष बड़कोट श्री बुद्धि सिंह रावत ने बताया कि पर्यावरण को बचाना है तो प्रदूषण को अपने घ्ार से हटाना होगा। उन्हांेने कहा कि पॉलिथीन की थैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
जनपक्ष आजकल के कार्यकारी संपादक श्री चारु तिवारी ने कहा कि स्थानीय धरोहरों को बचाने के प्रयास हों। उन्होंने कहा कि तिलाड़ी शहीदों ने जंगल बचाने की मुहिम छेड़ी थी और आज भी इसकी आवश्यकता है। 70 के दशक में जंगल बचाने के लिए वनांदोलनों का एक दौर चला जिससे चिपको आंदोलन का जन्म हुआ। इसमें महिलाओं और युवाओं ने भारी योगदान दिया। उन्होंने एक तर्क दिया कि एक मैच के दौरान जितनी बिजली एक स्टेडियम में खर्च होती है उससे कम से कम 7 गांवों को बिजली से रोशन किया जा सकता है।
मजदूर नेता प्रेम बल्लभ सुंदरियाल ने कहा कि आज आबादी बढ़ रही है और पानी कम हो रहा हैं इसके लिए सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि गंगा और यमुना का जल 30 प्रतिशत आबादी की पानी की आवश्यकता की पूर्ति करता है। सरकार द्वारा बड़े-बड़े डैम बनाकर लोगों को विस्थापित करने का षड्यंत्र किया जा रहा है।
संगोष्ठी में ई. रमेश रावत, शांति ठाकुर, जगमोहन सिह चंद, डॉ. (मेजर) बच्चन सिंह रावत, सोबेन्द्र सिंह रावत, केंद्र सिंह राणा, आनंदी राणा, जयवीर सिंह चंद आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में महिला समूह की विशेष भागीदारी रही।
शुक्रवार, 20 मई 2011
पृथक जिले के लिए हस्ताक्षर अभियान 25 से
नौगांव(उत्तरकाशी)। यमुना घाटी पृथक जनपद की मांग को लेकर रवांई और जौनपुर के लोग २५ से ३० मई तक यमुनोत्री से लेकर ढाटमीर तक हस्ताक्षर अभियान यात्रा निकालेंगे।
यमुना घाटी विकास संगठन, रवांई लोक कल्याण समिति तथा सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण समिति की ओर से संयुक्त रूप से हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जाएगा। इसमें रवांई और जौनपुर के हजारों लोग भागीदारी करेंगे। हस्ताक्षर अभियान यात्रा २५ मई को यमुनोत्री में मां यमुना की पूजा-अर्चना के साथ शुरू होगी। यहां से खरसाली, स्यानाचट्टी, खरादी, बड़कोट, नौगांव, पुरोला, मोरी, नैटवाड़ी, सांकरी, जखोल होते हुए ढाटमीर पहुंचेगी। यात्रा का समापन ३० मई को तिलाड़ी शहीद दिवस के अवसर पर बड़कोट में होगा। क्षेत्र के बुद्धिजीवियों का कहना है कि यहां की तमाम समस्याओं का समाधान सिर्फ पृथक यमुना घाटी जनपद का गठन ही है। हस्ताक्षर अभियान को पूरी तरह गैर राजनीतिक रखा जाएगा।
साभार : अमर उजाला
http://www.amarujala.com/city/Utter%20Kashi/Utter%20Kashi-15173-17.html