मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

बच्चों ने खेल खेल में सीखे विज्ञान के गूढ़ रहस्य!

  • चार दिन की कार्यशाला में ही बच्चे समझने लगे विज्ञान के टेड़े सवाल !!
  • विजेन्द्र रावत
नौगाँव (उत्तरकाशी)। में हमारी संस्था सामाजिक एवं पर्यावरणीय कल्याण समिति (सेवा) ने कक्षा 6  से लेकर 8  तक के 11  स्कूलों के 101  बच्चों के लिए  "अनुभव के आधार पर विज्ञान कार्यशाला" का आयोजन किया। मैं चार दिन के इस शिविर में बच्चों में आये परिवर्तन पर चकित था . शिविर के पहले दिन गुम शुम से रहने वाले ग्रामीण स्कूलों से आये बच्चे समापन के दिन जिस बिंदास ढंग से अपने आप को प्रस्तुत कर रहे थे उससे उनके अविभावक व शिक्षक दोनों ही बेहद खुश दिखे।
कार्यशाला में मॉडल बनाते बच्चे
 
इस कार्यशाला का आयोजन यूकास्ट, उत्तराखंड, प्रथम एजुकेशन फ़ाउन्डेशन, नई दिल्ली एवं सेवा संस्था (नौगाँव) के संयुक्त प्रयास से किया गया जिसमें प्रथम के युवा वैज्ञानिकों ने बच्चों को मनोवैज्ञानिक ढंग से खेल खेल में कंकाल तंत्र, हवाई जहाज की बनावट व अन्तरिक्ष विज्ञान जैसे पेचीदा रहस्यों को माडल बनाकर बेहद ही सरल ढंग से समझाया और बच्चों ने इस अध्ययन का खूब लाभ उठाया।इनके माडल बच्चों ने खुद ही तैयार किये व उनके बारे में सीख कर एक दूसरे में अपना ज्ञान बांटा भी.
 बच्चे अपने नर कंकाल मॉडल के साथ
यूकोस्ट के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र डोभाल चाहते थे कि विज्ञान की इस शिक्षा की रोशनी उन दूरदराज के बच्चों तक पहुंचाई जाए जहां हर सुविधा का घोर अभाव है.
हम भी इस बात को लेकर चिंतित थे कि कैसे यमुना व टौंस घाटी के सुदूर गाँव फते पर्वत, पंचगाई, बडासू व गीठ जैसे पिछड़े इलाकों के बच्चों को इस प्रकार की आधुनिक शिक्षा से जोड़ा जाए? 
देश भर में अनुभव आधारित विज्ञान की शिक्षा देने वाले प्रथम संस्था के युवा वैज्ञानिक यहाँ के बच्चों के सीखने की ललक को देखकर अचम्बित थे उनका मत था कि यहाँ के बच्चों में शहरों के महगें अंग्रेजी स्कूलों के बच्चों से कहीं ज्यादा प्रतिभा है यदि इनको, उनके मुकाबले आधी सुविधा भी मिल जाए तो ये उन्हें काफी पीछे छोड़ जायेंगे।
कार्यशाला के बारे में अपने अनुभव बांटता एक छात्र

 
अब "सेवा" अपने इस अभियान को दूर दराज के स्कूलों तक ले जाने के अभियान में जुटी है और अब अगला पड़ाव बडकोट, पुरोला, मोरी, जखोल, लिवाड़ी, राना व खरसाली जैसे दूर दराज के स्कूलों में होगा।

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